At Lucknow District Jail -1941
गोली के ज़द पे जम गऐ , सीनों को तान के
तोपों के मुँह पे डट गऐ ,अंजाम जान के
क्या वीर थे सुपूत वो हिन्दोस्तान के
कैसे ये मस्त लोग थे क्या नौजवान थेl
फौजों को अपने ध्यान में लाऐ नहीँ कभी
दुश्मन के दिल नज़र में समाऐ नहीँ कभी
मैदाँ से अपने पाऊँ हटाऐ नहीँ कभी
कैसे ये मस्त लोग थे क्या नौजवान थे
रण सामने था जोश में बढ़ते चले गऐ
कुहसार ज़ुल्म-o-जोर पे चढ़ते चले गऐ
आशार झूम झूम के पढ़ते चले गऐ
कैसे ये मस्त लोग थे क्या नौजवान थे
सुख चैन की बहार न ललचा सकी इन्हें
धन की नई फ़ुहार न बहका सकी इन्हें
घरबार की भी चाह न घबरा सकी इन्हें
कैसे ये मस्त लोग थे क्या नौजवान थे
क़ानून को रौंदते गाते गुज़र गऐ
सच्चाईयों की धूम मचाते गुज़र गऐ
दुख में भी सुख के गीत सुनाते गुज़र गऐ
कैसे ये मस्त लोग थे क्या नौजवान थे
मिटते हुऐ समाज को ठुकरा के बढ़ गऐ
धर्म आ गया जो राह में कतरा के बढ़ गऐ
इठला के, गा के , सैकड़ों बल खा के बढ़ गऐ
कैसे ये मस्त लोग थे क्या नौजवान थे
ये मुस्कुरा के शौक़ से रण में चले गऐ
ये भूक और प्यास के बन में चले गऐ
ये चाँद इब्तिदा के गहन में चले गऐ
कैसे ये मस्त लोग थे क्या नौजवान थे